"मैं भी साधिका हूँ" — एक नन्ही साधिका की आत्मकथा
"मुझे ध्यान लगाना पहले थोड़ा बोरिंग लगता था…
पर जब मैंने JGO फाउंडेशन का अंतर-ध्यान संगम कार्यक्रम ज्वॉइन किया, तो ध्यान मेरे लिए एक खेल जैसा बन गया।
सब कुछ बहुत शांत था… जब हम सबने आँखें बंद कीं, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपने अंदर किसी और दुनिया में जा रही हूँ।
सबसे अच्छा मुझे योग ध्यान लगा — जहाँ शरीर भी थमता है और मन भी।
मैंने पहली बार जाना कि ध्यान सिर्फ बड़ों के लिए नहीं होता।
हम बच्चे भी बहुत कुछ महसूस करते हैं, सोचते हैं…
अंतर-ध्यान संगम ने मुझे ये सिखाया कि हमारी उम्र में भी हम खुद से मिल सकते हैं, खुद को समझ सकते हैं।
अब मैं चाहती हूँ कि मेरी क्लास की मेरी दोस्तें भी आएं, वो भी ये अनुभव करें।
क्योंकि ये कोई क्लास नहीं थी — ये तो जैसे मन की चुप्पी में मिलने वाली एक प्यारी सी दोस्ती थी।
ध्यान अब मेरे लिए बैठने का नहीं, मुस्कुराने का नाम बन गया है।
और हाँ, अब मैं खुद को नन्ही साधिका कहकर बुलाना पसंद करती हूँ।"
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